बुधवार, 12 जनवरी 2022

युवा संदेश

उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत 
अर्थात् उठो, जागो, और ध्येय की प्राप्ति तक रूको मत।

मैं सिर्फ और सिर्फ प्रेम की शिक्षा देता हूं और मेरी सारी शिक्षा वेदों के उन महान सत्यों पर आधारित है जो हमें समानता और आत्मा की सर्वत्रता का ज्ञान देती है।
सफलता के तीन आवश्यक अंग हैं-शुद्धता,धैर्य और दृढ़ता। लेकिन, इन सबसे बढ़कर जो आवश्यक है वह है प्रेम।
हम ऐसी शिक्षा चाहते हैं जिससे चरित्र निर्माण हो।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें